ठगी का ताना-बाना
साइबर अपराधियों ने खुद को बैंक अधिकारी बताते हुए पीड़ित इंस्पेक्टर से संपर्क किया। उन्होंने एक संदिग्ध लेन-देन का बहाना बनाकर यह दावा किया कि उनके बैंक खाते को सुरक्षित करने के लिए कुछ प्रक्रियाएं पूरी करनी होंगी।
ठगों ने इंस्पेक्टर का विश्वास जीतने के लिए शुरुआती चरण में 94 हजार रुपये उनके खाते में वापस जमा किए। इसके बाद, धीरे-धीरे उन्होंने 34 अलग-अलग ट्रांजेक्शन के माध्यम से पीड़ित के खाते से कुल 71.24 लाख रुपये निकाल लिए।
कैसे रखा ‘डिजिटल अरेस्ट’ में?
साइबर अपराधियों ने पीड़ित को लगातार फर्जी निर्देश देकर उन्हें 30 दिनों तक अपनी योजना के अनुसार काम करने के लिए मजबूर किया। इस दौरान, पीड़ित को न तो ठगी का अंदाजा हुआ और न ही वे किसी को इस बारे में जानकारी दे पाए।
पुलिस कार्रवाई में जुटी
घटना की जानकारी मिलने के बाद, पीड़ित ने ग्वालियर साइबर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि ठगों ने अत्यधिक सटीकता और योजना के साथ इस अपराध को अंजाम दिया है। फिलहाल, अपराधियों की पहचान और उनकी लोकेशन का पता लगाने के लिए तकनीकी टीम की मदद ली जा रही है।
साइबर ठगी की बढ़ती घटनाएं
यह घटना ग्वालियर में अब तक की सबसे बड़ी साइबर ठगी बताई जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला साइबर सुरक्षा में बड़ी चूक का संकेत देता है।
नागरिकों के लिए सलाह
साइबर पुलिस ने नागरिकों को सलाह दी है कि वे किसी भी अनजान व्यक्ति को अपनी बैंकिंग या व्यक्तिगत जानकारी साझा न करें।
यदि कोई संदिग्ध कॉल या मैसेज प्राप्त होता है, तो तुरंत इसकी सूचना साइबर सेल को दें।
बढ़ती साइबर सुरक्षा की जरूरत
इस घटना ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि साइबर अपराधी नए-नए तरीकों से लोगों को निशाना बना रहे हैं। इस तरह के मामलों से बचने के लिए जागरूकता और सतर्कता जरूरी है। पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां भी इस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत पर जोर दे रही हैं।