हर्षद मेहता घोटाले का
संक्षिप्त विवरण
हर्षद मेहता घोटाले ने शेयर बाजार में निवेश करने के लिए भारत की बैंकिंग प्रणाली की खामियों का उपयोग किया। मेहता और उनके सहयोगियों ने बैंक फंड का इस्तेमाल करके शेयर की कीमतों को कृत्रिम रूप से बढ़ाने के तरीके खोजे। यह घोटाला 1991-1992 के दौरान सामने आया, जब भारतीय अर्थव्यवस्था बड़े सुधारों के दौर से गुजर रही थी। हर्षद मेहता ने बैंकिंग नियमों की कमी और बाजार की तेजी का लाभ उठाया, जिससे उन्होंने बैंक फंड का उपयोग करके शेयरों की कीमतें आसमान पर पहुंचा दीं।
घोटाले की कुल हेराफेरी का अनुमान लगभग ₹4,000 करोड़ था (जो आज के समय में ₹24,000 करोड़ से अधिक होता)। शेयर बाजार की इस बड़ी गिरावट ने लगभग ₹1 लाख करोड़ की संपत्ति को नष्ट कर दिया। इस घोटाले के बाद बैंकिंग और वित्तीय प्रणाली की गंभीर खामियों पर ध्यान दिया गया और इसके परिणामस्वरूप महत्वपूर्ण सुधार हुए।
हर्षद मेहता की कहानी गरीबी से अमीरी की तरफ बढ़ने की एक कहानी है। एक निम्न-मध्यम वर्गीय गुजराती परिवार में जन्मे, उन्होंने मुंबई में छोटे-मोटे कामों से अपने करियर की शुरुआत की। 1980 के दशक में, उन्होंने अपनी खुद की फर्म ग्रोमोर रिसर्च एंड एसेट मैनेजमेंट की स्थापना की और शेयर बाजार में तेजी से उभरे। उनकी आक्रामक ट्रेडिंग रणनीतियों और कम मूल्य के शेयरों की पहचान करने की क्षमता ने उन्हें "बिग बुल" के रूप में प्रसिद्ध कर दिया।
1992 घोटाले की कार्यप्रणाली
हर्षद मेहता घोटाला जटिल था, जिसमें कई बैंकों और वित्तीय संस्थानों का फायदा उठाकर नकली बैंक रसीदों (BR) और अन्य वित्तीय साधनों का इस्तेमाल किया गया। मेहता ने बैंकों से पैसे निकालकर उन फंडों का इस्तेमाल स्टॉक की कीमतें बढ़ाने के लिए किया। उन्होंने चुनिंदा शेयरों को बड़ी मात्रा में खरीदा, जिससे उनकी कीमतें बढ़ गईं और बाद में इन शेयरों का उपयोग करके और भी ज्यादा धन उधार लिया।
प्रमुख व्यक्तियों की भूमिका
घोटाले में कई प्रमुख व्यक्ति शामिल थे, जिनमें:
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हर्षद मेहता: मुख्य आरोपी और मास्टरमाइंड
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सुचेता दलाल: पत्रकार जिन्होंने घोटाले को उजागर किया
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बैंक अधिकारी: कई बैंक कर्मचारियों की भूमिका नकली BR जारी करने में सामने आई
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राजनेता: घोटाले से जुड़ी राजनीतिक संलिप्तता के आरोप लगे
घोटाले का प्रभाव
इस घोटाले का भारतीय शेयर बाजार पर व्यापक प्रभाव पड़ा:
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शेयर बाजार में भारी गिरावट: बीएसई सेंसेक्स में तेजी से गिरावट आई।
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निवेशकों का विश्वास डगमगाया: खुदरा निवेशकों को बड़ा नुकसान हुआ और शेयर बाजार के प्रति विश्वास टूट गया।
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विनियामक सुधार: भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की स्थापना के साथ सख्त विनियम लागू किए गए।
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बैंकिंग सुधार: आरबीआई ने बैंकिंग क्षेत्र के नियमों में महत्वपूर्ण बदलाव किए।
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ट्रेडिंग का आधुनिकीकरण: इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग और डीमैटरियलाइजेशन की दिशा में कदम उठाए गए।
जनता और मीडिया की प्रतिक्रिया
मीडिया ने इस घोटाले को बहुत कवर किया और यह मुद्दा कई महीनों तक चर्चा का विषय बना रहा। हर्षद मेहता एक तरह की सेलिब्रिटी बन गए थे, जिनकी अमीरी की जीवनशैली और कार्यशैली ने कई लोगों को आकर्षित किया। हालांकि, इसके साथ ही लोगों में गुस्सा और अविश्वास भी बढ़ा, खासकर उन निवेशकों के बीच जिन्होंने अपनी पूंजी खो दी थी।
निष्कर्ष
हर्षद मेहता घोटाला भारत के वित्तीय इतिहास में एक अहम मोड़ था। इसने हमारी वित्तीय प्रणाली की कमजोरियों को उजागर किया और बैंकिंग और शेयर बाजार की सोच को बदल दिया। इस घोटाले से मिले सबक ने भारतीय वित्तीय बाजारों को अधिक पारदर्शी और सख्त नियमों के तहत विकसित करने में मदद की।