कारोबारी की कार का पीछा कर डबरा से ग्वालियर तक मारे कट
झांसी रोड थाना क्षेत्र के माधव नगर निवासी और चावल कारोबारी अतुल हर दिन की तरह गुरुवार रात भी डबरा से अपने फॉर्च्यूनर वाहन (MP 07 CK 9611) से ग्वालियर लौट रहे थे। उनके साथ उनका छोटा भाई ऋषभ और ड्राइवर धर्मेन्द्र चौहान भी थे। डबरा से ही एक काली स्कॉर्पियो (MP 07 ZQ 9712) ने उनकी कार का पीछा करना शुरू कर दिया। स्कॉर्पियो के चालक ने कई बार उनकी गाड़ी को ओवरटेक किया और कुछ दूरी पर रुककर कट मारे। हाईवे पर भी उसने गलत दिशा से गाड़ी निकालते हुए अचानक ब्रेक लगाए, जिससे उनकी कार दुर्घटना का शिकार होने से बच गई। ग्वालियर के पास जब अतुल ने स्कॉर्पियो को रोकने की कोशिश की, तो ड्राइवर ने उन्हें जान से मारने की धमकी देकर वहां से फरार हो गया। पुलिस ने मामले की शिकायत दर्ज कर ली है।
PM विद्यालक्ष्मी योजना: बिना आर्थिक बाधा के उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ सकेंगे विद्यार्थी
केंद्र सरकार ने छात्रों को बिना आर्थिक रुकावट के उच्च शिक्षा प्राप्त करने में मदद के लिए पीएम विद्यालक्ष्मी योजना शुरू की है। इस योजना का उद्देश्य मेधावी छात्रों को देश के शीर्ष 860 उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिला लेकर अपनी शिक्षा पूरी करने में वित्तीय सहायता प्रदान करना है। योजना के तहत छात्रों की ट्यूशन फीस और पाठ्यक्रम से जुड़े अन्य खर्चे कवर किए जाएंगे।
इसमें सार्वजनिक और निजी दोनों प्रकार के उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्रों को वित्तीय सहायता मिलेगी। इस योजना में सरकार 7.5 लाख रुपये तक के ऋण पर 75 प्रतिशत क्रेडिट गारंटी प्रदान करेगी, जिससे बैंकों को छात्रों को शिक्षा ऋण उपलब्ध कराने में सहूलियत होगी। इसके अलावा, जिन छात्रों की वार्षिक पारिवारिक आय 8 लाख रुपये तक है और जो अन्य सरकारी छात्रवृत्ति या ब्याज छूट योजनाओं के पात्र नहीं हैं, उन्हें अधिस्थगन अवधि के दौरान 10 लाख रुपये तक के ऋण पर 3 प्रतिशत की ब्याज छूट भी दी जाएगी।
इस योजना के लिए "पीएम-विद्यालक्ष्मी" पोर्टल उपलब्ध है, जहां छात्र शिक्षा ऋण और ब्याज छूट के लिए एकीकृत आवेदन प्रक्रिया के माध्यम से ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। ब्याज छूट का भुगतान ई-वाउचर और सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) वॉलेट के माध्यम से डिजिटल तरीके से किया जाएगा।
बिरला नगर स्टेशन: यात्री सुविधाओं का अभाव: जल्द ट्रेन संचालन की जरूरत"
यदि बिरला नगर स्टेशन से पैसेंजर ट्रेनों का संचालन जल्द शुरू नहीं किया गया, तो यात्रियों को लगातार असुविधा का सामना करना पड़ेगा। वर्तमान में सात जोड़ी पैसेंजर ट्रेनों के स्टॉपेज और स्टेशन स्टाफ की मौजूदगी के बावजूद, संचालन नहीं होने से स्टेशन का विकास रुक रहा है। निर्माण कार्य के चलते प्लेटफार्म तक पहुंचना भी मुश्किल हो गया है, जिससे जाम और भीड़ बढ़ रही है और हादसों की संभावना भी। अतिरिक्त जरूरत पर निकट के स्टेशन से स्टाफ भेजा जा सकता है, जिससे यात्री सुविधा बेहतर हो सकेगी।
डेंगू की बढ़ती संख्या से ग्वालियर में चिंताजनक स्थिति, मच्छर के प्रकोप से बच्चे प्रभावित"
ग्वालियर में डेंगू के 10 नए केस सामने आए हैं, जिनमें आठ बच्चे और एक 10 महीने की बच्ची भी शामिल है। लगातार बारिश के कारण शहर के कई इलाकों में जलभराव हुआ, जिससे डेंगू फैलाने वाले मच्छरों का लार्वा तेजी से पनपा। जीआर मेडिकल कॉलेज में 165 संदिग्ध मरीजों के सैंपल की जांच के बाद 20 पॉजिटिव मिले, जिनमें से 10 ग्वालियर के हैं। संक्रमितों में 9 से 37 साल तक के मरीज शामिल हैं। बच्चों की सुरक्षा के लिए पूरी आस्तीन के कपड़े पहनने की सलाह दी जा रही है।
अक्टूबर माह में प्रदेश में 1.85 लाख वाहन बिके: ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के बावजूद बिना नंबर सड़कों पर दौड़ते वाहन
मध्यप्रदेश में अक्टूबर में 1,85,481 वाहन बिके, लेकिन स्मार्ट चिप कंपनी के काम बंद करने से परिवहन विभाग के पास रजिस्ट्रेशन कार्ड नहीं हैं। अब वाहन मालिकों को ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की सॉफ़्ट कॉपी से काम चलाना पड़ रहा है। कुछ लोग वाहन पर नंबर लिखवा रहे हैं, जबकि अन्य हार्ड कॉपी के इंतजार में बिना नंबर के गाड़ी चला रहे हैं। यदि कोई हादसा होता है तो वाहन को ट्रैक करना मुश्किल होगा। परिवहन विभाग नई कंपनी से अनुबंध करने की कोशिश कर रहा है, और स्मार्ट चिप से कुछ बकाया भुगतान किया गया है। अगर रजिस्ट्रेशन कार्ड नहीं मिला है, तो पुलिस चेकिंग में ऑनलाइन कॉपी दिखानी पड़ेगी, अन्यथा चालान लग सकता है।
कितनी बच्चियां गायब हैं? आरटीआई से सामने आया चौंकाने वाला आंकड़ा हाईकोर्ट ने शासन से मांगा जवाब
- अधिवक्ता आशीष प्रताप सिंह ने 2022 में एक महत्वपूर्ण याचिका दायर की थी, जिसकी शुरुआत एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका से हुई थी। याचिका एक महिला द्वारा दायर की गई थी, जिसकी छोटी बेटी अचानक गायब हो गई थी। महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की, और लंबी सुनवाई के बाद पुलिस ने बताया कि बच्ची को खोजने के लिए हर संभव प्रयास किए गए हैं, जिसमें बाहरी राज्यों में खोजबीन और पोस्टर लगाना भी शामिल था, लेकिन बच्ची का कोई पता नहीं चल सका। इसके बाद, कोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया कि जब बच्ची मिले, तो उसे मां के सुपुर्द कर दिया जाए।
इस मामले के लंबा खिंचने के बाद, महिला खुद ही पुलिस के पास गई, लेकिन पुलिस ने उसे सही जानकारी देने के बजाय वहां से भगा दिया। यह देख महिला ने अधिवक्ता आशीष प्रताप सिंह के पास जाकर कहा, "वकील साहब! मेरी बेटी गायब हो गई है, लेकिन क्या यह सिर्फ मेरी बेटी की कहानी है, या और भी बहुत सी बच्चियां गायब हो रही होंगी?" इस बात ने आशीष के मन में एक सवाल उठाया, और उन्होंने आरटीआई के जरिए 2008 से 2020 तक गायब हुई बच्चियों के बारे में जानकारी मांगी। इसके अलावा, उन्होंने यह भी पूछा कि कितनी बच्चियां मिली हैं और उन्हें किसके सुपुर्द किया गया है।
पुलिस ने जानकारी देने से मना कर दिया, यह कहते हुए कि बच्चों की पहचान उजागर नहीं की जा सकती, क्योंकि यह जेजे बोर्ड के नियमों के खिलाफ है। जब पुलिस से कोई मदद नहीं मिली, तो आशीष ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। इसके बाद, उन्होंने एसपी के पास अपील की, और पुलिस से जानकारी मांगी। पुलिस ने बताया कि जानकारी 6000 पन्नों में है और इसके लिए 3000 रुपये देने होंगे। जब आशीष पैसे लेकर पहुंचे, तो पुलिस ने दस्तावेज़ देने से मना कर दिया और काफी देर बहस चली। अंततः पुलिस ने 2016 से 2021 के बीच गायब हुई बच्चियों का आंकड़ा दिया, जिसमें 800 बच्चियां शामिल थीं, जिनका अब तक कोई पता नहीं चला।
यह मामला अब न्यायालय में पहुंच गया है, और हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा है कि क्यों जानकारी नहीं दी जा सकती। आगामी सुनवाई में सरकार को इस सवाल का जवाब देना होगा। इस मामले में, अधिवक्ता ने यह साबित करने की कोशिश की है कि कैसे पुलिस और संबंधित विभाग गायब हुई बच्चियों के मामलों में पारदर्शिता नहीं दिखा रहे हैं।