Haridas Mundra और उनके भाई मिल कर करते थे शेयरबाजार में करते थे हेरा फेरी
मूंदड़ा का जन्म एक व्यापारिक परिवार में हुआ, जिसमें उनके दो छोटे भाई तुलसी दास और मनमोहन दास भी शामिल थे। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक लाइट बल्ब सेल्समैन के रूप में की। मूंदड़ा ने "तेज़ सौदे और स्टॉक बाज़ीगरी" के माध्यम से अपने व्यापारिक साम्राज्य की नींव रखी, छोटी कंपनियों के शेयर खरीदे और अफवाहों तथा सर्कुलर ट्रेडिंग के जरिए उनकी कीमतें बढ़ाकर लगभग 40 मिलियन रुपये (यूएस$10 मिलियन) का साम्राज्य खड़ा किया।
हालांकि, 1950 के दशक के मध्य तक, उनका व्यापार ताश के पत्तों की तरह बिखरने लगा और उन पर संदिग्ध नैतिकता का ठप्पा लग गया। 1956 में, बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज ने उन्हें नकली शेयरों की बिक्री के लिए दोषी ठहराया।
क्या था एलआईसी घोटाला
हरिदास मूंदड़ा LIC घोटाला भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) से जुड़ा एक बड़ा वित्तीय घोटाला था, जो 1980 के दशक में सामने आया। यह घोटाला मुख्य रूप से निम्नलिखित बिंदुओं के चारों ओर केंद्रित था:
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मूंदड़ा का परिचय: हरिदास मूंदड़ा एक व्यवसायी और जीवन बीमा उद्योग का प्रमुख व्यक्ति था। उसने अपनी कंपनी, "मूंदड़ा ग्रुप", के माध्यम से बीमा पॉलिसियों को बेचने के लिए LIC से बड़े पैमाने पर धन उधार लिया।
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धन का दुरुपयोग: मूंदड़ा ने LIC से लिए गए धन का उपयोग अपनी निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए किया। उसने जानबूझकर LIC के नियमों का उल्लंघन किया और अवैध तरीके से बड़े पैमाने पर धन का गबन किया।
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घोटाले का खुलासा: इस घोटाले का खुलासा तब हुआ जब LIC ने मूंदड़ा की कंपनियों को दिए गए ऋणों की जांच की। इसके परिणामस्वरूप, यह पता चला कि मूंदड़ा ने LIC से प्राप्त धन को अन्य गतिविधियों में निवेश किया था और बीमा पॉलिसियों के दावों का भुगतान नहीं किया।
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संसदीय जांच: इस घोटाले के बाद भारतीय संसद में एक जांच समिति का गठन किया गया, जिसने इस मामले की विस्तृत जांच की और मूंदड़ा के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की।
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सुधार और नीतियाँ: इस घोटाले ने भारतीय बीमा क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता को उजागर किया, जिसके परिणामस्वरूप कई नए नियम और नीतियाँ लागू की गईं ताकि ऐसे घोटालों को रोका जा सके।
हरिदास मूंदड़ा LIC घोटाला भारतीय वित्तीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसने बीमा क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को स्पष्ट किया।
फ़िरोज़ गांधी ने मूंदड़ा घोटाले को उजागर किया था
जब फिरोज गांधी ने संसद में मुंद्रा मामले को उठाया, तो इसने पहले से ही एक सनसनीखेज घटना में और भी नाटकीयता जोड़ दी। सत्ता पक्ष की बेंच से खड़े होकर उन्होंने सरकार से सवाल किया कि क्या नवगठित जीवन बीमा निगम ने 55 लाख जीवन बीमा पॉलिसीधारकों के प्रीमियम का उपयोग कुख्यात शेयर सट्टेबाज हरिदास मुंद्रा के नियंत्रित कंपनियों में बाजार मूल्य से अधिक दाम पर शेयर खरीदने के लिए किया है।
इस प्रकार, प्रधानमंत्री को अपने दामाद का सामना करना पड़ा। वित्त मंत्री, जो खुद एक प्रसिद्ध उद्योगपति थे, ने पहले तो कहा कि "यह तथ्य नहीं है," लेकिन बाद में उन्हें स्वीकार करना पड़ा कि मामला सच था।
फ़िरोज़ गाँधी और नेहरू के बीच हुआ था विवाद
हालांकि, 1950 के दशक के मध्य तक, हरिदास मुंदड़ा व्यापार ताश के पत्तों की तरह बिखरने लगा और उन पर संदिग्ध नैतिकता का ठप्पा लग गया। 1956 में, बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज ने उन्हें नकली शेयरों की बिक्री के लिए दोषी ठहराया|
इस अनियमितता को 1958 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के फिरोज गांधी ने उजागर किया, जो उस समय रायबरेली सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, जो फिरोज के ससुर थे, चाहते थे कि यह मामला चुपचाप निपटाया जाए ताकि सरकार की छवि को नुकसान न पहुंचे।
हरिदास मूंदड़ा पर कार्रवाई विभिन्न स्तरों पर की गई थी, जिसमें निम्नलिखित प्रमुख बिंदु शामिल हैं:
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संसदीय जांच: मूंदड़ा घोटाले के उजागर होने के बाद, भारतीय संसद में एक जांच समिति का गठन किया गया। इस समिति ने बीमा निगम और मूंदड़ा की कंपनियों के बीच वित्तीय लेन-देन की जांच की। यह जांच इस बात पर केंद्रित थी कि कैसे मूंदड़ा ने LIC से अवैध रूप से धन प्राप्त किया और इसका दुरुपयोग किया।
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आर्थिक धोखाधड़ी के आरोप: मूंदड़ा पर आर्थिक धोखाधड़ी, धन की हेराफेरी, और LIC के नियमों का उल्लंघन करने के आरोप लगाए गए। यह आरोप भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) की वित्तीय स्थितियों को गंभीर रूप से प्रभावित करने वाले थे।
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कानूनी कार्रवाई: मूंदड़ा के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई। उसे गिरफ्तार किया गया और उसके खिलाफ कई मामले दर्ज किए गए। हालांकि, मूंदड़ा को पर्याप्त सबूतों के अभाव में जल्दी ही जमानत मिल गई, लेकिन कानूनी प्रक्रिया के कारण उसका व्यवसाय प्रभावित हुआ।
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वित्तीय पुनर्प्राप्ति: LIC ने अपनी वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए मूंदड़ा से धन की वसूली के प्रयास किए। इसके तहत उसकी संपत्तियों को सीज किया गया और उसे आर्थिक दंड भी भुगतना पड़ा।
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सुधारात्मक उपाय: इस घोटाले के बाद भारतीय सरकार और LIC ने बीमा क्षेत्र में सुधार की दिशा में कई कदम उठाए। नई नीतियाँ और नियम लागू किए गए ताकि भविष्य में ऐसे घोटालों को रोका जा सके।
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सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव: मूंदड़ा पर की गई कार्रवाई ने भारतीय राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार के मुद्दों को उजागर किया, जिसके कारण कई राजनीतिक नेताओं और अधिकारियों की स्थिति पर भी प्रश्नचिह्न लग गया।
इन सभी कार्रवाईयों ने बीमा क्षेत्र में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।